पद्मभूषण महामण्डलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी

निर्वत्त शंकराचार्य, संस्थापक भारत माता मंदिर, हरिद्वार (उ.ख.)

Swami Satyanand Giri Ji

स्वामी सत्यमित्रानंद जी आज भारत ही नहीं अपितु विश्व के एक ऐसे अजातशत्रु महापुरुष हैं जिन्होंने हरिद्वार में पहला भारत माता मंदिर निर्माण कर अद्भुत कार्य किया है। राष्ट्र एवं भारतीय संस्कृति की एकता के लिये उन्होंने जो कार्य किया है वैसा अभी तक कोई और नहीं कर सका ।

स्वामी विवेकानंद के भारत के नवनिर्माण के स्वपन को साकार रूप देने के लिये स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने 26 वर्ष की आयु में शंकराचार्य की पीठ पर अभिषिक्त होने के बाद अपनी प्रथम धर्म -प्रसार यात्रा अफ्रीकी देशों में प्रवासी भारतीयों की के दिलों में भारतीय संस्कृति, संस्कार और राष्ट्रीय चिंतन की धारा प्रवाहित की । रामचरित मानस को आदर्श मानते हुये 'समन्वय' का सूत्र दिया स्वामीजी ने इसी भावना और संकल्प से हरिद्वार में सप्त सरोवर क्षेत्र में गंगातट पर "भारत माता मंदिर" की प्रतिष्ठा की जिसका लोकार्पण 1983 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने किया।

स्वामी जी ने एक साधारण परिवार में आगरा के समीम एक ग्राम के पाण्डे परिवार में जन्म 19 सितम्बर 1932 (अश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी सोम वि. सं. 1990) को जन्म लेकर अपनी जीवन यात्रा प्रारम्भ की । उनकी प्रारम्भिक शिक्षा नैमिषारण्य, प्रयागराज, काशी और कानपुर में हुई।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल जी एवं गुरु गोलवलकर जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्होंने स्वयं को राष्ट्र धर्म से जोड़ दिया।

अध्यात्म की प्यास ने उन्हें तत्कालीन गीता मनीषी स्वामी वेदव्यासानंद जी के आश्रम ऋषिकेश पहुँचा दिया | उनकी प्रतिभा और व्यक्तित्व ने उन्हें 29 अप्रैल 1960 (अक्षय तृतीय) को 28 बर्ष की आयु में भानपुरा शंकराचार्य के पद पर आसीन किया 9 बर्ष इस पद पर सुशोभित होकर 1969 में पद त्याग कर उन्होंने अपना कार्य क्षेत्र विश्व को बनाया और यूरोप, अमेरिका आदि में धर्म प्रसार किया, स्वामीजी को 2015 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. स्वामी जी धर्म और राष्ट्र की सेवा करते करते 25 जून 2019 को ब्रह्मलीन हो गये.

जूनापीठाधीश्वर

आचार्य श्री महा मण्डलेश्वर स्वामी अवधेषानंद गिरी जी
अध्यक्ष भारत माता मंदिर, समन्वय 'सेवा ट्रस्ट एवं भारतमाता जनहित ट्रस्ट

Swami Satyanand Giri Ji

परम आदरणीय श्रद्धेय पद्म भूषण, निवर्त' शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद के प्रिय सन्यासी शिष्य स्वामी अवधेशानंदजी गिरि भारत माता मंदिर, समन्वय परिवार सेवा न्यास एवं जनहित न्यास के अध्यक्ष पद पर सुशोभित हैं।

स्वामी जी जूना अखाड़े के आचार्य भी लम्बे समय से संरक्षक भी है | स्वामी जी बाल्यकाल से ही प्रतिभा के धनी थे उनका अध्यात्म की तरफ का आकर्षण हिमालय की तरफ खींच लाया | लम्बे समय तक उत्तरकाशी की पर्वत श्रंखलाओं में वेद, पुराणों एवं उपनिषद का अध्ययन स्वामी अवधूत प्रकाश महाराज की देख रेख में हुआ। स्वामी अवघूत प्रकाश महाराज आत्म ज्ञान और योग में पारंगत थे | 1985 में स्वामी सत्यमित्रानंदजी से सन्यास दीक्षा लेकर 1998 से भारत के सबसे बड़े अखाडे 'जूना अखाड़ा' के प्रथम पुरुष हैं और लाखों नागा साधुओं के गुरु एवं मार्ग दर्शक हैं । आज स्वामी जी दुनिया में शांति एवं प्रेम के विश्व गुरु के रूप में माने जाते है उनकी मधुर वाणी को सुनने के लिये करोड़ों करोड़ो भक्त लालायित रहते हैं ।

आप हिंदू धर्म आचार्य सभा के अध्यक्ष भी हैं। आध्यात्मिक गुरु के साथ आप एक बहुत ही अच्छे लेखक भी है | 24 नवंबर 1962 को खुर्जा बुलंदशहर में जन्मे बाल्यकाल में आप पिछले जन्मों की घटनाओं की याद में खोये रहते थे स्वामी जी सभी धर्मों का बहुत आदर और सम्मान करते हैं | स्वामी जी को उनके गुरु स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि ने अपने जीवन काल में ही भारत माता मंदिर और समन्वय परिवार न्यास का अध्यक्ष का भार सौंप दिया था ।

महामण्डलेश्वर स्वामी श्री अखिलेश्वरानंद गिरि

Swami Satyanand Giri Ji

स्वामी श्री अखिलेश्वरानंद गिरि जी का जन्म भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ कृष्ण चतुर्थी को तदनुसार दिनाङ्क 11 जनवरी 1955 को मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा नगर में हुआ। इनकी माता जी का नाम स्व. श्रीमती राजेश्वरी दुबे तथा पिता जी का नाम स्व. श्री सत्यनारायण दुबे था। इनका संन्यास पूर्व का नाम ध्रुवनारायण दुबे था । इन्होंने प्राथमिक शिक्षा से लेकर हाई स्कूल तक की पढ़ाई छिंदवाड़ा में की। अपनी 16 वर्ष की अल्पायु में इन्होंने घर त्यागकर भगवान् श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट चले गये। वहाँ इन्होंने तपोनिष्ठ सुप्रसिद्ध सन्त स्वामी श्री अव्यक्तबोधाश्रम जी महाराज से ब्रह्मचर्य आश्रम की दीक्षा ली। गुरुदेव ने इनका यज्ञोपवीत संस्कार कराया तथा चित्रकूट के ही एक गुरुकुल (संस्कृत पाठशाला) में प्रवेश दिलाकर सन् 1971 से 1977 तक संस्कृत भाषा के माध्यम से गीता, उपनिषदों का स्वाध्याय एवं वेदान्त विषय के " प्रकिया ग्रन्थों " तथा रामायण का अभ्यास कराया। आगे की शिक्षा हेतु ध्रुवनारायण ने नैमिषारण्य, ऋषिकेश, हरिद्वार और वाराणसी में अध्ययन किया । वाराणसी में सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से इन्होंने शांकर वेदान्त विषय से "शास्त्री " तक की शिक्षा प्राप्त की।

सन् 1985 में ब्रह्मचारी ध्रुवनारायण अपने जन्मस्थान छिंदवाड़ा वापस आ गये यहाँ आकर आपने विश्व हिन्दू परिषद को अपना समय धर्मजागरण के माध्यम से समाज सेवा को दिया। श्री राम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन में आपकी सक्रिय भूमिका रही। सन् 1998 में आपने हरिद्वार के सुप्रसिद्ध भारत माता मंदिर के संस्थापक निवृत्त शंकराचार्य स्वामी श्री सत्यमित्रानंद गिरि से संन्यास दीक्षा ग्रहण किया और आप का नाम स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि हो गया । सन् 2010 में आपको तपोनिधि निरंजनी अखाड़ा ने "महामण्डलेश्वर " की उपाधि प्रदान की। जबलपुर के समन्वय सेवा केन्द्र में आपका स्थायी निवास है । सम्प्रति आप मध्यप्रदेश शासन में पशुपालन विभाग के उपक्रम "म.प्र. गोसंवर्द्धन बोर्ड " की कार्यपरिषद् के अध्यक्ष (कैबिनेट मंत्री दर्जा) हैं। उनके जीवन के 68 बसंत पूर्ण होने पर हम उनसे दीक्षा प्राप्त सभी शिष्यगण एवं सभी गुरुभाई / बहिनें उन्हें स्वस्थ और दीर्घ जीवन की बधाई व शुभकामना देते हैं।

स्वामी ब्रम्हमित्रानन्द गिरी जी

Swami Satyanand Giri Ji

आगरा के पास एक बाज का पुरा ग्राम में 7 मार्च 1938 को एक ब्राम्हण परिवार में जन्मे श्री ब्रम्हजीत शर्मा एक शिक्षक बनकर ग्वालियर सम्भाग में आये और शिक्षण के साथ साथ आपने BA, MA(भूगोल) एवं MA (हिंदी) एवं Phd की शिक्षा प्राप्त की। जन्म से ही बड़े धार्मिक थे। बर्ष 1964 में स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी के व्यक्तित्व ने उन्हें बहुत आकर्षित किया और उनसे जुड़ते चले गये। ब्रम्हजीत शर्मा के हिंदी ज्ञान एवं लेखनी से स्वामी जी भी प्रभावित हुये और बाद हरिद्वार के मासिक पत्रिका 'समन्वय साधना पथ' के संपादन का कार्य आखरी सांस तक किया।

ब्रम्हजीत शर्मा जी की सादगी, अटूट श्रद्धा और सज्जनता उन्हें स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी के निकट ले गई और मार्च 2010 में ब्रम्हजीत शर्मा ने सन्यास दीक्षा लेकर स्वामी ब्रम्हमित्रानन्द गिरी बन गये। 40-45 वर्ष स्वामी गुरुदेव की सेवा में रहे और उनके साथ देश और विदेश में यात्रायें की | ग्वालियर में 'समन्वय सेवा आश्रम' उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है, स्वामी ब्रम्हमित्रानन्द गिरी 9 मई 2021 को ब्रम्हलीन हो गये।

स्वामी ब्रम्हमित्रानन्द गिरी जी की विद्वता, श्रद्धा एवं परमपूज्य स्वामी जी के प्रति आस्था अनुकरणीय है |